बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

टैंक और गुलाब



काहिरा में अब लोग गोलियों से नहीं डरते, मौत से नहीं डरते, सेना से नहीं डरते। राजधानी की सड़कों पर टैंक अब खौफ नहीं भरोसा जगा रहे हैं। अब लोग टैंक को छू कर देख रहे हैं, उसके सामने बैखौफ इबादत कर रहे हैं, सैनिकों से हाथ मिला रहे हैं यहां तक कि टैंक पर चढ़कर देश का झंडा लहरा रहे हैं। इतिहास गवाह है कि जब अवाम सेना से डरना बंद कर देती है तो तानाशाही के दिन पूरे हो जाते हैं। 28 साल पहले 28 अक्टूबर 1983 को ऐसा ही नजारा दिखा था फिलीपींस की राजधानी मनीला की सड़कों पर।

प्रेसीडेंट मारकोस के 18 साल की तानाशाही के खिलाफ अवाम की नाराजगी कोराजोन एक्विनो की पीपुल्स पावर के जरिए सामने आई। 10 लाख लोगों ने पहली बार मारकोस के महल की ओर मार्च किया, बगैर डरे, बगैर झिझके। मारकोस ने इस बगावत करार देते हुए सेना को प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का हुक्म दिया। लेकिन इस बार जब टैंक सड़कों पर आए तो लोग डरे नहीं, उन्होंने सैनिकों को फूल भेंट किए। फिलीपींस के प्रेसीडेंट के तौर पर मारको स के दिन अब पूरे हो गए थे।  


8 साल बाद इतिहास ने एक बार फिर खुद को रुस में दोहराया। अगस्त 1991 में बोरिस येल्तसिन ने एक टैंक पर चढ़कर सोवियत सरकार के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया। जीत एक बार फिर अवाम की हुई।

काहिरा में इतिहास एक बार फिर खुद को दोहरा रहा है। सेना का साथ छूटने का साफ मतलब है कि अब मुबारक शासक तो हैं लेकिन तानाशाह नहीं रहे। उन्होंने पहले ही अपनी पत्नी और बेटों को ब्रिटेन भेज दिया है..अब देश छोड़कर जाने की बारी उनकी है।