बुधवार, 15 जुलाई 2015

what is so special in the movie bahubali ?

review of film bahubali
मैंने बाहुबली देखी और अब इसके बारे में लिखने से खुद को रोक नहीं पा रहा। भारत में सिनेमा के इतिहास में आज तक किसी फिल्म को ऐसी ओपनिंग नहीं मिली जैसी बाहुबली को, आंध्रप्रदेश में प्रभास की फैन फोलोइंग है, लेकिन इसका असर तमिल सिनेमा पर ऐसा पड़ा है कि सिनेमा ओनर धनुष की फिल्म मारी की रिलीज को कम से कम एक हफ्ते टालना चाहते हैं। बॉलीवुड की दुनिया में भी मूल रूप से तेलगु और हिन्दी में डब बाहुबली हॉलीवुड की ए ग्रेड मूवी की तरह पेश आ रही है। आखिर ऐसा क्या है बाहुबली में जो अब तक किसी भारतीय सिनेमा में देखने को नहीं मिला था। ये है विराट की कल्पना और उसे कामयाबी से पर्दे पर उतारना। भारतीय सिनेमा में राजा रानी, सेनाओं में युद्ध, महल, पहाड़ और झरने पहले भी दिखाए गए हैं लेकिन उस स्केल पर उस डिटेलिंग में नहीं जैसे बाहुबली में। 6 साल पहले मगाधीरा बनाकर राजामौली ने साबित किया था कि वो पीरियड फिल्म के लिए जरूरी कैनवास को उसकी तमाम डिटेलिंग के साथ बेहदद आसानी से पर्दे पर उतार सकते हैं लेकिन बाहुबली का स्केल, इसका कैनवास मगाधीरा से बहुत बड़ा है। ये ऐसा है जैसे किसी फिल्मकार की आखिरी कल्पना हो जिसे साकार करने के बाद वो सोच ले कि बस अब मुझे कुछ और नहीं करना। जितनी देर मैंने फिल्म देखी मुझे बार बार निराला की राम की शक्तिपूजा याद आती रही। वो विराट बिम्बों की योजना जो कहते हैं कालीदास, बाणभट्ट और भवभूति के बाद आधुनिक काल में सिर्फ टैगोर और निराला ही साध पाए।
राक्षस पदतल पृथ्वी टलमल,
बिंध महोल्लास से बार बार आकाश विकल।
राम के सामने रावण की सेना कैसी है ? वो इतनी विशाल है कि उनके पैरों की गूंज से धरती कांप रही है, उनके उल्लास से अट्टहास से आकाश विकल हो रहा है। और रावण की इस सेना की रक्षा कौन कर रहा है।
फिर देखी भीम मूर्ति आज रण देखी जो
आच्छादित किये हुए सम्मुख समग्र नभ को,
ज्योतिर्मय अस्त्र सकल बुझ बुझ कर हुए क्षीण,
पा महानिलय उस तन में क्षण में हुए लीन,
स्वयं जगतजननी मां पार्वती ... भीमा रुप में मां दुर्गा अपने विराट रुप में मौजूद हैं, उनका रुप इतना विराट है कि सारा आकाश उनका एक अंश मात्र रह गया है उन्होंने इस तरह रावण और उसकी सेना को अपने आंचल में छिपा लिया है कि मंत्रों से सिद्ध ज्योतिर्मय बाण भी उन तक पहुंच कर बुझ जा रहे हैं, उनमें लीन हो जा रहे हैं। दशों दिशाओं तक माता के हाथ हैं, अंबर उनका वस्त्र है ।
देखा है महाशक्ति रावण को लिये अंक,
लांछन को ले जैसे शशांक नभ में अशंक,
हत मन्त्रपूत शर सम्वृत करतीं बार बार,
निष्फल होते लक्ष्य पर क्षिप्र वार पर वार।
विचलित लख कपिदल क्रुद्ध, युद्ध को मैं ज्यों ज्यों,
झक-झक झलकती वह्नि वामा के दृग त्यों त्यों,
पश्चात्, देखने लगीं मुझे बँध गये हस्त,
फिर खिंचा न धनु, मुक्त ज्यों बँधा मैं, हुआ त्रस्त!"
माता आदिशक्ति ने रावण को इस तरह आंचल में छिपा लिया है कि हर मंत्रसिद्ध बाण निष्फल हो रहा है और वानरसेना के कोलाहल से नाराज माता की आंखों से चिंगारी बरसने लगी है। उन्होंने अपने इन्हीं नेत्रों से राम की ओर ज्योंही दृष्टि फेरी कि राम के हाथ बंध गए वो धनुष की प्रत्यंचा भी नहीं खींच पाए। जय पराजय की क्षुद्र मानसिकता से परे, हमारी अंतरात्मा में सत्य और असत्य के इस निरंदर संघर्ष के लिए आदिशक्त की साधना को लेकर ये बिम्ब है निराला का... भाव है ...अन्याय जिधर है उधर शक्ति।
सिनेमा के पर्दे पर कुछ इसी तरह का बिम्ब पेश करने में कामयाब रहे हैं राजामौली।