शनिवार, 5 मार्च 2011

क्वात्रोकी खुश हुआ !

मुझे नाज़ है कि मैंने भारत के औद्योगिक विकास में योगदान दिया है, यहां मेरे तीन बच्चों की पैदाइश हुई है
ये बयान किसी नामचीन बिजनेसमैन का नहीं, भारत में बोफोर्स तोप के दलाल ओट्टावियो क्वात्रोकी का है। क्वात्रोकी पर 1987 में बोफोर्स तोप सौदे में 41 करोड़ की दलाली का इल्जाम है, उसे देश की अदालत में पेश करने के नाम पर सीबीआई ने 250 करोड़ खरच डाले, लेकिन वो कभी देशकी अदालत में पेश नहीं हुआ। इटली की एक खाद कंपनी का ये नुमाइंदा कैसे स्वीडेन की तोप कंपनी और भारत की सेना के बीच हुए करार में दलाल बन गया ये कहानी भी कम दिलचस्प नहीं। दरअसल दलाली क्वात्रोकी का पेशा था। एशिया में स्नैमप्रोगेती के दलाल के तौर पर उसने 16 मुश्किल साल बिताए थे, लेकिन उसकी किस्मत तब बदल गई जब 1974 में उसकी मुलाकात राजीव और सोनिया गांधी से हुई। तब राजीव की शादी को सिर्फ छह साल बीते थे। क्वात्रोकी को निजी रिश्ते को मुनाफे के कारोबार में तब्दील करने में महारत हासिल थी। 1980 से 1987 के बीच उसने स्नैमप्रोगेती के लिए एक दो नहीं पूरे साठ बड़े कांट्रेक्ट हासिल किए। अब भारत में खाद के करार का मतलब क्वात्रोकी बन गया था.. आलम ये था कि जब क्वात्रोकी किसी मंत्रालय में दाखिल होता था तो नौकरशाह और नेता अपनी कुरसी से उठ कर खड़े हो जाते थे  । और जो क्वात्रोकी की मुखालफत करते थे, उन्हें इसकी कीमत फौरन चुकानी पड़ती थी। नवल किशोर शर्मा इसी वजह से पेट्रोलियम मिनिस्टर से पार्टी महासचिव बना दिए गए, पी के कौल कैबिनेट सचिव से राजदूत बना दिए गए तो गेल के चेयरमैन एच एस चीमा को अपने पद से हटना पड़ा। लेकिन दलाली के जरिए ज्यादा से ज्यादा रकम कमाने की क्वात्रोकी की भूख अभी बाकी थी। 15 नवंबर 1985 को उसने बोफोर्स कंपनी के साथ एक करार किया। इस करार के मुताबिक क्वात्रोकी भारत में तोपों के सौदे में बोफोर्स कंपनी की मदद करनेवाला था और बदले में उसे सौदे की कुल रकम का 3 फीसदी बतौर कमीशन मिलना था। लेकिन ये कांट्रैक्ट 1 अप्रैल 1986 को खत्म हो जाना था। क्वात्रोकी के दबाव की वजह से ये सौदा 24 मार्च 1986 को हुआ। जैसा कि तय हुआ था..3 सितंबर 1986 को बोफोर्स ने क्वात्रोकी की कंपनी ए ई सर्विसेज को 7.3 मिलियन डॉलर का भुगतान ज्यूरिच के नॉर्डफिनांज बैंक के खाता नंबर 18051-53   में कर दिया। यहां से रकम किस तरह पनामा, जेनेवा, चैनेल आइलैंड और गुएरनसी में क्वात्रोकी और उसकी बीवी के अकाउंट में गया इसका सारा ब्योरा सीबीआई के पास मौजूद है। दिलचस्प बात ये है कि 16 अप्रैल 1987 को स्वीडेन के रेडियो डाइगेन्स इको ने बोफोर्स सौदे में दलाली का खुलासा कर दिया लेकिन सीबीआई ने इस मामले में केस दर्ज किया पूरे तीन साल बाद यानी 22 जून 1990 को। इसके बाद भी क्वात्रोकी अगले तीन साल तक भारत में ही रहा। क्वात्रोकी तब भारत छोड़कर चला गया, जब स्विटरजरलैंड की सरकार ने भारत सरकार के पास बोफोर्स सौदे में दलाली के तौर पर क्वात्रोकी के खाते में जमा रकम का ब्योरा भेजा। विपक्ष की मांग के बावजूद नरसिंहाराव सरकार ने क्वात्रोकी का पासपोर्ट जब्त करने की जहमत नहीं उठाई और  30 जुलाई 1993 को क्वात्रोकी भारत छोड़कर हमेशा के लिए चला गया। जिस सीबीआई को क्वात्रोकी को पकड़कर अदालत के सामने पेश करना था, उसी सीबीआई ने दिसंबर 2005 में लंदन जाकर ब्रिटेन की सरकार से क्वात्रोकी को  जब्त खाते से रकम निकालने देने की गुहार लगाई।  तीन साल बाद फिर इसी सीबीआई ने इंटरपोल से क्वात्रोकी के खिलाफ रेडकार्नर नोटिस वापस लेने की फरियाद की। अब तक सारी दुनिया के लिए मुजरिम  क्वात्रोकी अब सिर्फ भारत सरकार का मुजरिम रह गया था। आखिरी कसर सीबीआई ने पिछले साल 16 दिसंबर को अदालत में  क्लोजर रिपोर्ट पेश कर पूरी कर दी। अब क्वात्रोकी सीबीआई का शुक्रगुजार है जिस एजेंसी पर अदालत और सरकार ने 21 साल तक क्वात्रोकी के खिलाफ तफ्तीश करने की जिम्मेदारी सौंपी उसी एजेंसी ने अदालत में एक भी दिन पेश हुए बगैर उसकी रिहाई के सारे इंतजाम किए। रिश्वत और रसूख की ऐसी नायाब मिसाल दुनिया में और कोई नहीं।

थॉमस और न्यूटन


फिजिक्स में एमएससी करनेवाले थॉमस फिजिक्स में न्यूटन के गति के उस सिद्धांत को भूल गए कि प्रत्येक क्रिया की बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है। सीवीसी के पद पर अपनी नियुक्ति को उन्होंने इस आधार पर सही ठहराया था कि जब दागी नेता सांसद बन सकते हैं तो वो सीवीसी क्यों नहीं।  अदालत में सासंदों की नजीर देनेवाले थॉमस अब संवैधानिक पद की हसरत रखनेवाले हर नौकरशाह के लिए खुद एक नजीर बन गए हैं।
लेकिन 60 साल के पोलायिल जोसेफ थॉमस का अदालत में अपनी सफाई में अजीबोगरीब नजीर देने का ये पहला मामला नहीं। 1973 बैच के केरल कैडर के इस आईएस अफसर पर जब मलेशिया से ऊंची कीमत पर पामोलिन की खरीद का इल्जाम लगा तो उनकी सफाई ये थी कि पिछले कई सालों में उन्हें दी गई पदोन्नति ये साबित करती है कि उनपर लगे इल्जाम बेबुनियाद हैं। लेकिन चंद हफ्ते पहले.. बीस साल पुराने इस मामले में  उन पर मुकदमा चलाए जाने की इजाजत देकर सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि करियर में मिली तरक्की किसी की बेगुनाही का ठोस सबूत करार नहीं दिया जा सकता।

अगर आप सीवीसी की वेबसाइट पर उनके बायोडाटा पर नजर दौड़ाएं तो यहां उन 13 पदों के नाम दिए गए हैं जिन पर सीवीसी बनने से पहले थॉमस ने काम किया था, इसमें कोचीन के सब कलेक्टर, एरनाकुलम के डीसी और मछली विभाग के डायरेक्टर तक का नाम दिया गया है  लेकिन यहां फूड एंड सिविल सप्लाई के सचिव के तौर पर उनके काम का कोई ब्योरा नहीं जिस पद पर रहते हुए उन्होंने मलेशिया से कथित तौर पर पामोलिन की खरीद का आदेश दिया था। थॉमस की परेशानी ये है कि सीवीसी के पद से हटने के बाद सीबीआई उनसे टूजी घोटाले में उसी सवाल का जवाब मांगेगी जिसका जवाब देने में नाकाम रहने की वजह से थॉमस के पहले के टेलीकॉमसचिव  सिद्धार्थ बेहूरा फिलहाल जेल की हवा खा रहे हैं। यही वजह है कि मीडिया के तीखेवार, विपक्ष के प्रहार और सरकार की मनुहार के बावजूद थॉमस पद से इस्तीफा देने को राजी नहीं, उनकी नियुक्ति को अवैध ठहराने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी नहीं। दरअसल ..सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को ये पता लगाने को कहा है कि जिन कंपनियों ने लाइसेंस मिलने के बाद भी मोबाइल सेवा शुरू नहीं की उनपर टेलीकॉम विभाग ने शो काउज नोटिस क्यों जारी नहीं किया। बेहूरा जहां 9 जनवरी 2009 से 30 सितंबर 2009 तक टेलीकॉम सचिव थे, वहीं थॉमस 1 अक्टूबर 2009 से सितंबर 2010 तक। दरअसल मंत्रालय शो काउज नोटिस तभी जारी करता है जब उस पर टेलीकॉम सचिव के दस्तखत हों और हकीकत ये है कि बेहुरा की तरह ही थॉमस ने भी अवैध तौर पर 2जी लाइसेंस हासिलकरनेवाली कंपनियों के खिलाफ नोटिस जारी करने में कभी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। कई लोग विपक्ष के इस आरोप को तवज्जो देते हैं कि सरकार ने थॉमस की नियुक्ति टूजी घोटाले के चंद अहम किरदारों को बचाने के लिए की, लेकिन हकीकत ये है कि थॉमस सबसे पहले और अगर जरुरत पड़ी तो सिर्फ खुद को इस घोटाले से बचाने की जुगत में लगे थे। अब थॉमस की नियती ये है कि कभी सीबीआई के अधिकारियों को उनसे मिलने के लिए एप्वाइंटमेंट लेना होता था अब उन्हें हर दिन उस पल का इंतजार करना है जब सीबीआई दफ्तर में पेश होने के लिए उन्हें नोटिस दी जाएगी , वो भी एप्वाइंटमेंट लिए बगैर।