शनिवार, 5 मार्च 2011

थॉमस और न्यूटन


फिजिक्स में एमएससी करनेवाले थॉमस फिजिक्स में न्यूटन के गति के उस सिद्धांत को भूल गए कि प्रत्येक क्रिया की बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है। सीवीसी के पद पर अपनी नियुक्ति को उन्होंने इस आधार पर सही ठहराया था कि जब दागी नेता सांसद बन सकते हैं तो वो सीवीसी क्यों नहीं।  अदालत में सासंदों की नजीर देनेवाले थॉमस अब संवैधानिक पद की हसरत रखनेवाले हर नौकरशाह के लिए खुद एक नजीर बन गए हैं।
लेकिन 60 साल के पोलायिल जोसेफ थॉमस का अदालत में अपनी सफाई में अजीबोगरीब नजीर देने का ये पहला मामला नहीं। 1973 बैच के केरल कैडर के इस आईएस अफसर पर जब मलेशिया से ऊंची कीमत पर पामोलिन की खरीद का इल्जाम लगा तो उनकी सफाई ये थी कि पिछले कई सालों में उन्हें दी गई पदोन्नति ये साबित करती है कि उनपर लगे इल्जाम बेबुनियाद हैं। लेकिन चंद हफ्ते पहले.. बीस साल पुराने इस मामले में  उन पर मुकदमा चलाए जाने की इजाजत देकर सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि करियर में मिली तरक्की किसी की बेगुनाही का ठोस सबूत करार नहीं दिया जा सकता।

अगर आप सीवीसी की वेबसाइट पर उनके बायोडाटा पर नजर दौड़ाएं तो यहां उन 13 पदों के नाम दिए गए हैं जिन पर सीवीसी बनने से पहले थॉमस ने काम किया था, इसमें कोचीन के सब कलेक्टर, एरनाकुलम के डीसी और मछली विभाग के डायरेक्टर तक का नाम दिया गया है  लेकिन यहां फूड एंड सिविल सप्लाई के सचिव के तौर पर उनके काम का कोई ब्योरा नहीं जिस पद पर रहते हुए उन्होंने मलेशिया से कथित तौर पर पामोलिन की खरीद का आदेश दिया था। थॉमस की परेशानी ये है कि सीवीसी के पद से हटने के बाद सीबीआई उनसे टूजी घोटाले में उसी सवाल का जवाब मांगेगी जिसका जवाब देने में नाकाम रहने की वजह से थॉमस के पहले के टेलीकॉमसचिव  सिद्धार्थ बेहूरा फिलहाल जेल की हवा खा रहे हैं। यही वजह है कि मीडिया के तीखेवार, विपक्ष के प्रहार और सरकार की मनुहार के बावजूद थॉमस पद से इस्तीफा देने को राजी नहीं, उनकी नियुक्ति को अवैध ठहराने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी नहीं। दरअसल ..सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को ये पता लगाने को कहा है कि जिन कंपनियों ने लाइसेंस मिलने के बाद भी मोबाइल सेवा शुरू नहीं की उनपर टेलीकॉम विभाग ने शो काउज नोटिस क्यों जारी नहीं किया। बेहूरा जहां 9 जनवरी 2009 से 30 सितंबर 2009 तक टेलीकॉम सचिव थे, वहीं थॉमस 1 अक्टूबर 2009 से सितंबर 2010 तक। दरअसल मंत्रालय शो काउज नोटिस तभी जारी करता है जब उस पर टेलीकॉम सचिव के दस्तखत हों और हकीकत ये है कि बेहुरा की तरह ही थॉमस ने भी अवैध तौर पर 2जी लाइसेंस हासिलकरनेवाली कंपनियों के खिलाफ नोटिस जारी करने में कभी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। कई लोग विपक्ष के इस आरोप को तवज्जो देते हैं कि सरकार ने थॉमस की नियुक्ति टूजी घोटाले के चंद अहम किरदारों को बचाने के लिए की, लेकिन हकीकत ये है कि थॉमस सबसे पहले और अगर जरुरत पड़ी तो सिर्फ खुद को इस घोटाले से बचाने की जुगत में लगे थे। अब थॉमस की नियती ये है कि कभी सीबीआई के अधिकारियों को उनसे मिलने के लिए एप्वाइंटमेंट लेना होता था अब उन्हें हर दिन उस पल का इंतजार करना है जब सीबीआई दफ्तर में पेश होने के लिए उन्हें नोटिस दी जाएगी , वो भी एप्वाइंटमेंट लिए बगैर।

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