मुझे नाज़ है कि मैंने भारत के औद्योगिक विकास में योगदान दिया है, यहां मेरे तीन बच्चों की पैदाइश हुई है
ये बयान किसी नामचीन बिजनेसमैन का नहीं, भारत में बोफोर्स तोप के दलाल ओट्टावियो क्वात्रोकी का है। क्वात्रोकी पर 1987 में बोफोर्स तोप सौदे में 41 करोड़ की दलाली का इल्जाम है, उसे देश की अदालत में पेश करने के नाम पर सीबीआई ने 250 करोड़ खरच डाले, लेकिन वो कभी देशकी अदालत में पेश नहीं हुआ। इटली की एक खाद कंपनी का ये नुमाइंदा कैसे स्वीडेन की तोप कंपनी और भारत की सेना के बीच हुए करार में दलाल बन गया ये कहानी भी कम दिलचस्प नहीं। दरअसल दलाली क्वात्रोकी का पेशा था। एशिया में स्नैमप्रोगेती के दलाल के तौर पर उसने 16 मुश्किल साल बिताए थे, लेकिन उसकी किस्मत तब बदल गई जब 1974 में उसकी मुलाकात राजीव और सोनिया गांधी से हुई। तब राजीव की शादी को सिर्फ छह साल बीते थे। क्वात्रोकी को निजी रिश्ते को मुनाफे के कारोबार में तब्दील करने में महारत हासिल थी। 1980 से 1987 के बीच उसने स्नैमप्रोगेती के लिए एक दो नहीं पूरे साठ बड़े कांट्रेक्ट हासिल किए। अब भारत में खाद के करार का मतलब क्वात्रोकी बन गया था.. आलम ये था कि जब क्वात्रोकी किसी मंत्रालय में दाखिल होता था तो नौकरशाह और नेता अपनी कुरसी से उठ कर खड़े हो जाते थे । और जो क्वात्रोकी की मुखालफत करते थे, उन्हें इसकी कीमत फौरन चुकानी पड़ती थी। नवल किशोर शर्मा इसी वजह से पेट्रोलियम मिनिस्टर से पार्टी महासचिव बना दिए गए, पी के कौल कैबिनेट सचिव से राजदूत बना दिए गए तो गेल के चेयरमैन एच एस चीमा को अपने पद से हटना पड़ा। लेकिन दलाली के जरिए ज्यादा से ज्यादा रकम कमाने की क्वात्रोकी की भूख अभी बाकी थी। 15 नवंबर 1985 को उसने बोफोर्स कंपनी के साथ एक करार किया। इस करार के मुताबिक क्वात्रोकी भारत में तोपों के सौदे में बोफोर्स कंपनी की मदद करनेवाला था और बदले में उसे सौदे की कुल रकम का 3 फीसदी बतौर कमीशन मिलना था। लेकिन ये कांट्रैक्ट 1 अप्रैल 1986 को खत्म हो जाना था। क्वात्रोकी के दबाव की वजह से ये सौदा 24 मार्च 1986 को हुआ। जैसा कि तय हुआ था..3 सितंबर 1986 को बोफोर्स ने क्वात्रोकी की कंपनी ए ई सर्विसेज को 7.3 मिलियन डॉलर का भुगतान ज्यूरिच के नॉर्डफिनांज बैंक के खाता नंबर 18051-53 में कर दिया। यहां से रकम किस तरह पनामा, जेनेवा, चैनेल आइलैंड और गुएरनसी में क्वात्रोकी और उसकी बीवी के अकाउंट में गया इसका सारा ब्योरा सीबीआई के पास मौजूद है। दिलचस्प बात ये है कि 16 अप्रैल 1987 को स्वीडेन के रेडियो डाइगेन्स इको ने बोफोर्स सौदे में दलाली का खुलासा कर दिया लेकिन सीबीआई ने इस मामले में केस दर्ज किया पूरे तीन साल बाद यानी 22 जून 1990 को। इसके बाद भी क्वात्रोकी अगले तीन साल तक भारत में ही रहा। क्वात्रोकी तब भारत छोड़कर चला गया, जब स्विटरजरलैंड की सरकार ने भारत सरकार के पास बोफोर्स सौदे में दलाली के तौर पर क्वात्रोकी के खाते में जमा रकम का ब्योरा भेजा। विपक्ष की मांग के बावजूद नरसिंहाराव सरकार ने क्वात्रोकी का पासपोर्ट जब्त करने की जहमत नहीं उठाई और 30 जुलाई 1993 को क्वात्रोकी भारत छोड़कर हमेशा के लिए चला गया। जिस सीबीआई को क्वात्रोकी को पकड़कर अदालत के सामने पेश करना था, उसी सीबीआई ने दिसंबर 2005 में लंदन जाकर ब्रिटेन की सरकार से क्वात्रोकी को जब्त खाते से रकम निकालने देने की गुहार लगाई। तीन साल बाद फिर इसी सीबीआई ने इंटरपोल से क्वात्रोकी के खिलाफ रेडकार्नर नोटिस वापस लेने की फरियाद की। अब तक सारी दुनिया के लिए मुजरिम क्वात्रोकी अब सिर्फ भारत सरकार का मुजरिम रह गया था। आखिरी कसर सीबीआई ने पिछले साल 16 दिसंबर को अदालत में क्लोजर रिपोर्ट पेश कर पूरी कर दी। अब क्वात्रोकी सीबीआई का शुक्रगुजार है जिस एजेंसी पर अदालत और सरकार ने 21 साल तक क्वात्रोकी के खिलाफ तफ्तीश करने की जिम्मेदारी सौंपी उसी एजेंसी ने अदालत में एक भी दिन पेश हुए बगैर उसकी रिहाई के सारे इंतजाम किए। रिश्वत और रसूख की ऐसी नायाब मिसाल दुनिया में और कोई नहीं।
ये बयान किसी नामचीन बिजनेसमैन का नहीं, भारत में बोफोर्स तोप के दलाल ओट्टावियो क्वात्रोकी का है। क्वात्रोकी पर 1987 में बोफोर्स तोप सौदे में 41 करोड़ की दलाली का इल्जाम है, उसे देश की अदालत में पेश करने के नाम पर सीबीआई ने 250 करोड़ खरच डाले, लेकिन वो कभी देशकी अदालत में पेश नहीं हुआ। इटली की एक खाद कंपनी का ये नुमाइंदा कैसे स्वीडेन की तोप कंपनी और भारत की सेना के बीच हुए करार में दलाल बन गया ये कहानी भी कम दिलचस्प नहीं। दरअसल दलाली क्वात्रोकी का पेशा था। एशिया में स्नैमप्रोगेती के दलाल के तौर पर उसने 16 मुश्किल साल बिताए थे, लेकिन उसकी किस्मत तब बदल गई जब 1974 में उसकी मुलाकात राजीव और सोनिया गांधी से हुई। तब राजीव की शादी को सिर्फ छह साल बीते थे। क्वात्रोकी को निजी रिश्ते को मुनाफे के कारोबार में तब्दील करने में महारत हासिल थी। 1980 से 1987 के बीच उसने स्नैमप्रोगेती के लिए एक दो नहीं पूरे साठ बड़े कांट्रेक्ट हासिल किए। अब भारत में खाद के करार का मतलब क्वात्रोकी बन गया था.. आलम ये था कि जब क्वात्रोकी किसी मंत्रालय में दाखिल होता था तो नौकरशाह और नेता अपनी कुरसी से उठ कर खड़े हो जाते थे । और जो क्वात्रोकी की मुखालफत करते थे, उन्हें इसकी कीमत फौरन चुकानी पड़ती थी। नवल किशोर शर्मा इसी वजह से पेट्रोलियम मिनिस्टर से पार्टी महासचिव बना दिए गए, पी के कौल कैबिनेट सचिव से राजदूत बना दिए गए तो गेल के चेयरमैन एच एस चीमा को अपने पद से हटना पड़ा। लेकिन दलाली के जरिए ज्यादा से ज्यादा रकम कमाने की क्वात्रोकी की भूख अभी बाकी थी। 15 नवंबर 1985 को उसने बोफोर्स कंपनी के साथ एक करार किया। इस करार के मुताबिक क्वात्रोकी भारत में तोपों के सौदे में बोफोर्स कंपनी की मदद करनेवाला था और बदले में उसे सौदे की कुल रकम का 3 फीसदी बतौर कमीशन मिलना था। लेकिन ये कांट्रैक्ट 1 अप्रैल 1986 को खत्म हो जाना था। क्वात्रोकी के दबाव की वजह से ये सौदा 24 मार्च 1986 को हुआ। जैसा कि तय हुआ था..3 सितंबर 1986 को बोफोर्स ने क्वात्रोकी की कंपनी ए ई सर्विसेज को 7.3 मिलियन डॉलर का भुगतान ज्यूरिच के नॉर्डफिनांज बैंक के खाता नंबर 18051-53 में कर दिया। यहां से रकम किस तरह पनामा, जेनेवा, चैनेल आइलैंड और गुएरनसी में क्वात्रोकी और उसकी बीवी के अकाउंट में गया इसका सारा ब्योरा सीबीआई के पास मौजूद है। दिलचस्प बात ये है कि 16 अप्रैल 1987 को स्वीडेन के रेडियो डाइगेन्स इको ने बोफोर्स सौदे में दलाली का खुलासा कर दिया लेकिन सीबीआई ने इस मामले में केस दर्ज किया पूरे तीन साल बाद यानी 22 जून 1990 को। इसके बाद भी क्वात्रोकी अगले तीन साल तक भारत में ही रहा। क्वात्रोकी तब भारत छोड़कर चला गया, जब स्विटरजरलैंड की सरकार ने भारत सरकार के पास बोफोर्स सौदे में दलाली के तौर पर क्वात्रोकी के खाते में जमा रकम का ब्योरा भेजा। विपक्ष की मांग के बावजूद नरसिंहाराव सरकार ने क्वात्रोकी का पासपोर्ट जब्त करने की जहमत नहीं उठाई और 30 जुलाई 1993 को क्वात्रोकी भारत छोड़कर हमेशा के लिए चला गया। जिस सीबीआई को क्वात्रोकी को पकड़कर अदालत के सामने पेश करना था, उसी सीबीआई ने दिसंबर 2005 में लंदन जाकर ब्रिटेन की सरकार से क्वात्रोकी को जब्त खाते से रकम निकालने देने की गुहार लगाई। तीन साल बाद फिर इसी सीबीआई ने इंटरपोल से क्वात्रोकी के खिलाफ रेडकार्नर नोटिस वापस लेने की फरियाद की। अब तक सारी दुनिया के लिए मुजरिम क्वात्रोकी अब सिर्फ भारत सरकार का मुजरिम रह गया था। आखिरी कसर सीबीआई ने पिछले साल 16 दिसंबर को अदालत में क्लोजर रिपोर्ट पेश कर पूरी कर दी। अब क्वात्रोकी सीबीआई का शुक्रगुजार है जिस एजेंसी पर अदालत और सरकार ने 21 साल तक क्वात्रोकी के खिलाफ तफ्तीश करने की जिम्मेदारी सौंपी उसी एजेंसी ने अदालत में एक भी दिन पेश हुए बगैर उसकी रिहाई के सारे इंतजाम किए। रिश्वत और रसूख की ऐसी नायाब मिसाल दुनिया में और कोई नहीं।
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जवाब देंहटाएं"मैं सच्ची चोटें बांटता हूं... झूठी मुस्कान नहीं बेचता..."
आता रहूँगा - हार्दिक शुभकामनाएं
अच्छी प्रस्तुति, ब्लॉग लेखन में आपका स्वागत, हिंदी लेखन को बढ़ावा देने के लिए तथा पत्येक भारतीय लेखको को एक मंच पर लाने के लिए " भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" का गठन किया गया है. आपसे अनुरोध है कि इस मंच का followers बन हमारा उत्साहवर्धन करें , हम आपका इंतजार करेंगे.
जवाब देंहटाएंहरीश सिंह.... संस्थापक/संयोजक "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच"
हमारा लिंक----- www.upkhabar.in/
शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंइस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना,
जवाब देंहटाएंमैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके.समाज में समरसता,सुचिता लानी है तो गलत बातों का विरोध करना होगा,
हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.