उम्मीद युवाओं से और भरोसा बुजुर्गों पर
क्या ये महज इत्तेफाक है कि 1942 के आंदोलन के वक्त बापू की उम्र थी 73 साल
1975 के आंदोलन की वक्त जेपी की उम्र थी 73 साल
और रामलीला मैदान में अनशन करते अन्ना की उम्र भी है 73 साल
यही नहीं सरकार के संकटमोचक के तौर पर सामने आए प्रणब दादा की उम्र है 76 साल
बात इतिहास की करें या सियासत की.. जोश की जगह देश ने हमेशा तजुर्बे को ज्यादा अहमियत दी है। परिवार की तरह ही देश को बनाने और संवारने में भी बुजुर्गों की भूमिका हमेशा से अहम रही है। आज भी ज्यादातर घरों में तमाम अहम फैसले बड़े बुजुर्ग ही लिया करते हैं। शायद यही वजह है कि ..आपको रामलीला मैदान में कई ऐसे लोग मिलेंगे जिन्हें कभी अन्ना की खामोशी में तो कभी अन्ना की तल्खी में अपने पिता का अक्स नजर आता है
आपको ऐसे बच्चे मिलेंगे जिन्हें रामलीला मैदान में भाषण देते या फिर आराम करते अन्ना में आज भी खादी की धोती और कुर्ता पहननेवाले अपने दादाजी नजर आते हैं।
भोले अन्ना.. भावुक अन्ना .. जिद्दी अन्ना.. खामोश अन्ना.. दरअसल हमारे परिवार का वो बुजर्ग है जिससे हम चाहकर भी कभी अलग नहीं हुए और अगर कभी उससे दूर हुए भी तो ये दूरी देर तक सालती रही है खलती रही है। देश और दादा के साथ अवाम का यही नाजुक रिश्ता अन्ना की सबसे बड़ी ताकत है। सियासत को इल्म हो न हो, हकीकत ये है कि हमारे यहां एक ईमानदार बुजुर्ग न तो कमजोर है और न ही साधारण, क्योंकि वो सिर्फ एक घर का नहीं हर घर का बाशिन्दा है।
सियासत को इल्म हो न हो, हकीकत ये है कि हमारे यहां एक ईमानदार बुजुर्ग न तो कमजोर है और न ही साधारण, क्योंकि वो सिर्फ एक घर का नहीं हर घर का बाशिन्दा है।
जवाब देंहटाएंनवजात आजादी को जिंदगी के तमाम पड़ावों से गुजरते देखने वाली आंखें, खुद मुकम्मल जिंदगी की कहानी कहती हैं... उस कहानी में झूठ की मिलावट नहीं, तजुर्बे की हकीकत झलकती है... गांधी और जेपी के सिलसिले के फकीर से लगते हैं अन्ना...। सफेद खादी में लिपटा उनका जिस्म साफगोई बयां करता है, सियासी लिबास नहीं लगता...। सड़कों पर तिरंगा थामे वतनपरस्ती के नग्मे गाते बुजुर्ग, जवान और बच्चों की फौज अन्ना की ताकत भी हैं और हथियार भी। लेकिन उन सभी के लिए अन्ना उम्मीद का एक रौशन चराग़ हैं, ख्वाहिशों, ख्वाबों की ताबीर हैं अन्ना। ये बात वो भी जानते हैं जो हुकूमत के नशे में चूर हैं... रामलीला मैदान में अवाम का जमावड़ा उनके लिए खतरा भी है और नसीहत भी...। काश, वो भी बुजुर्ग अन्ना की आंखों में पल रहे जवान मुल्क के सपने को देख सकते...। एक परिवार और हिंदुस्तान की बुनियाद में मिली गारे-मिट्टी की ताकत को समझकर वो भी अन्ना ही हो जाते।