जोनाथन स्विफ्ट की एक मशहूर कहानी है गुलिवर्स ट्रैवल्स ..1726 में पहली बार प्रकाशित हुआ ये उपन्यास कभी प्रिंट से बाहर नहीं हुआ। ये एक सैलानी की कहानी है जो समंदर से भटक कर 6 इंच के इंसानों की बस्ती लिलिपुट में आ जाता है। इंसानी फितरत पर लिखा गया 385 साल पुराना आयरिश अफसाना अब दिल्ली की हकीकत बन गया है। गुलिवर की जगह अन्ना को और लिलिपुट के बाशिन्दों की जगह सरकार और नौकरशाहों को रखकर देखिए .सिर्फ .ईमानदारी का होना या नहीं होना इंसान के कद को कहां से कहां पहुंचा देता है। दिल्ली पुलिस टीम अन्ना पर कानून तोड़ने के इल्जाम लगा रही है, फिर भी रामलीला मैदान में मौजूद अवाम अनशन के दसवें दिन अन्ना के दशावतार रुप का नमन कर रही है। लोकसभा में पहले पीएम फिर नेता प्रतिपक्ष और फिर सदन के इतिहास में पहली बार स्पीकर ने अपनी सीट से उठकर उनसे अपना अनशन तोड़ने की अपील की। ये है लिलिपुट की सियासत में गुलिवर अन्ना की ताकत। सरकार को लगता है कि ये ताकत अन्ना के मकसद की ताकत है, लेकिन अन्ना जानते हैं कि ये ताकत उस भरोसे की है जो उन्हें अवाम पर और अवाम को उन पर है।
सरकार को लगता है कि जो बात उसके आश्वासन से नहीं बनी वो बात संसद की अपील से बन जाएगी, लेकिन अन्ना को यकीन है कि अब वो मैं नहीं.. हम हैं, जनलोकपाल के जननायक के तौर पर वो ‘हम भारत के लोग’ की आवाज हैं। और संविधान की प्रस्तावना के अल्फाज रामलीला मैदान से गूंज बनकर नुमाइंदों तक जाएगी तो उसमें फरियाद नहीं फरमान होगा, अर्चना नहीं गर्जना होगी, याचना नहीं आदेश होगा। ये साल क्रांतियों का साल है। इजिप्ट में चमेली की चिंगारी में मुबारक की सरकार झुलस गई, लीबिया में गदर कामयाब रहा है और सीरिया में कामयाब होनेवाला है। हमारे यहां लोकतंत्र है, इसलिए बदलाव की उम्मीद और संभावना यहां सबसे ज्यादा है। सरकार को इल्म हो न हो, अन्ना को पता है कि अवाम की उम्मीदों और बदलाव की संभावनाओं से छेड़छाड़ करने का जोखिम सरकार नहीं ले सकती।
बचपन में दो बराबर लकीरें खींचकर मास्टर जी पूछते थे कि इनमें से अगर एक को बड़ा करना हो तो हमें क्या करना चाहिए... अक्सर हम एक लाइन को छोटा कर देते थे... और दूसरी लाइन ख़ुद ब ख़ुद बड़ी हो जाती थी... जबकि मास्टर जी कहते कि ख़ुद को बड़ा करना सीखो...
जवाब देंहटाएंआज अन्ना हज़ारे को देखता हूं तो लगता है कि उन्होने ख़ुद के क़द को तो बढ़ाया ही... सरकार के क़द को भी छोटा कर दिया.. अब अंतर इतना है कि वो अनंतकाल तक बना रहेगा... अन्ना के क़द के आगे शायद ही सियासत का कोई सिपेहसालार खड़ा भी हो पाएगा...
very well put..! famous poet and now part of team anna Kumar Viswas echoed the same sentiments in these beautiful words: 'इस वतन में ऐसा इक इंसां है यारो, जैसे अंधेरी कोठरी में कोई रौशनदान है यारो!'
जवाब देंहटाएंSo bereft is our nation of true ideals that Anna's moral authority stands tall over whole of society. What a common simple man can do simply by the virtue of honesty..till now this generation had seen only in Amir khan movies or in a more crude manner in Kamal hasan's works. But Anna hazare is an inspiration and probably an ideological answer to naxalities as well. Though it may still be far fetched to compare him with Mahatma gandhi. Almost all his fasts (barring one which was partially against the govt.) were about infusing communal harmony or for moral transgressions in his personal sphere. We can draw his parallel with Sriramalu (the telugu leader who died while fasting for seperate Andhra). Gandhi once termed him as a man obstinately honest to his values. But then the caveat is that even Sriramalu couldn't get Madras as capital of his envisioned state. Anna speaks the language of multitudes of masses of India to which the howard and oxford bred clan of Sibbals and Khurshids of ruling class shall always remain oblivious. No wonder then that Congress saw a foreign hand behind Anna! He today not only epitomizes the exasperated India but also mirrors the collective conscience of this ancient culture.What seperates him from
Gandhi is perhaps lack of that vision which seperates great from the truly iconic..
अण्णा के साथ खड़े लोग,क्या सिर्फ अण्णा की आवाज़ पर इकट्ठा हुए हैं..? नहीं..। ये सब, दरअसल, मेज़ के नीचे-नीचे चलने वाली काली अर्थव्यवस्था के मारे हुए हैं। सालों से अंदर-अंदर पनप रहा इनका आक्रोश, अण्णा गुलिवर की सबसे बड़ी ताक़त बन गया है। अब लिलिपुट की सरकार को,लिलिपुट की संगठित प्रजा का सामना करना होगा। अण्णा गुलिवर ने इस प्रजा को उसकी जादुई ताक़त याद दिला दी है।
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