अन्ना के आंदोलन में शामिल लोगों पर नजर डालिए ..इस आंदोलन में सबसे बड़ी तादाद युवाओं की है। नई सुबह का इंतजार करती देश की आधी आबादी, वो आबादी जिसने आजादी की जंग को देखा नहीं, सिर्फ उसके बारे में सुना है, वो आबादी जिसने इमरजेंसी और जेपी के आंदोलन के बारे में सुना भी है और पढ़ा भी है। तालीम से लैस और सियासत से बेजार, बेसब्र ये पीढी देश में बीते दस साल की तरक्की की उस रफ्तार से भी मुतमईन नहीं जिसका शुमार देश और दुनिया की सबसे तेज तरक्की के तौर पर किया जा रहा है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना की मुहिम से उसे अपने हिस्से की जमीन मिलने की आस बंधी है, मुट्ठी में आसमान भरने का हौसला मिला है। युवाओं को ख्वाब देखने की आदत होती है, उन्हें पूरा करने की ताकत भी होती है, अन्ना उसे नई सुबह के लिए इंतजार करने को नहीं कह रहे, वो उसे अपने हिस्से का सूरज उगाना सिखा रहे हैं।
अगर समूचे देश के युवा अगर अन्ना को उम्मीद की नजर से देख रहे हैं तो इसकी वजह शायद ये है कि आज के युवा को हक और इंसाफ के इंतजार में सारी उम्र गंवाना मंजूर नहीं, उसे रिश्वत और रसूख का नंगा खेल गवारा नहीं, उसे कलमाड़ी और राजा जैसे नुमाइंदे कबूल नहीं.. वो हर ओर नजर दौड़ाता है लेकिन मसीहाओं के इस देश में आज मसीहा के तौर पर अन्ना के सिवाय उसे कोई नजर नहीं आ रहा। उसकी नाराजगी उसकी बेबसी और उसकी बेसब्री अन्ना के लिए आस्था में तब्दील होगई है। सरकार को हो न हो, अन्ना को इस भरोसे की ताकत का बेहतर तौर पर अंदाजा है। हकीकत ये है कि आजादी के बाद देश की युवा शक्ति का इस्तेमाल जेपी आंदोलन ने भी किया और वीपी सिंह ने भी, लेकिन 1977 का और 1990 का युवा आज भी छले जाने के एहसास से जूझ रहा है। आज का सबसे अहम सवाल ये है कि क्या अन्ना का आंदोलन कुछ अलग साबित होगा।
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