मंगलवार, 16 नवंबर 2010

शीला जी को एहसास है मगर...


जब मसला जिंदगी और मौत का हो तो आमलोग ही काम आते हैं। मौत की इमारत क्या गिरी जो जहां था सबकाम छोड़कर जिंदगियां बचाने में जुट गया, लेकिन यहां पहुंचने में पुलिस को एक घंटे , राहत दल को दो घंटे और मुख्यमंत्री को 14 घंटे लगे।
शीला जी को गरीबों के दर्द का एहसास है लेकिन जरा आराम के साथ। हादसा रात के करीब 8 बजे हुआ शीला जी यहां सुबह के करीब दस बजे आईं। 3 मोतीलाल नेहरु मार्ग से लक्ष्मीनगर की दूरी बमुश्किल 14 किलोमीटर होगी लेकिन सीएम साहिबा को यहां आने में 14 घंटे लगे। अभी मुआमले की तफ्तीश बाकी है लेकिन शीलाजी को यकीन है कि हादसे की वजह एमसीडी की लापरवाही है। इसकी वजह सिर्फ ये नहीं कि मौत की इस इमारत को एनओसी एमसीडी ने जारी किया था और यहां पिछले दो महीने से बेसमेंट में पानी भरा था जिसे निकालने की जिम्मेदारी भी एमसीडी की थी, एक वजह शायद ये भी है कि एमसीडी में बीजेपी का बहुमत है। कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों में हुई देरी पर जब सवाल उठे थे तो शीला जी ने बारिश को इसकी वजह बताया था। आसमान से आनेवाली आफत पर भला किसका काबू है। जब गेम्स में घपलों और घोटालों की बात सामने आई तो उन्होंने सीधे तौर पर सुरेश कलमाड़ी को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। जब गेम्स पूरे हो गए तब कामयाबी का श्रेय लेनेवालों में वो सबसे आगे थीं। बस इसी वजह से दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर तेजेंदर खन्ना से उनकी नहीं बनती। खन्ना साहब भी गेम्स की कामयाबी का क्रेडिट लेना चाहते थे लेकिन शीला आगे निकल गईं और वो जी मसोस कर पीछे रह गए। लेकिन लक्ष्मीनगर हादसे के बाद खन्ना साहब पूरी तैयारी के साथ आए। इस नए किरदार में वो दिल्ली के लेफ्टीनेंट गवर्नर कम बिल्डिंग रिसर्च के साइंटिस्ट ज्यादा लग रहे थे। उन्होंने बताया कि यमुना के पास में होने की वजह से लक्ष्मीनगर के इलाके में मौजूद मिट्टी में नमी ज्यादा है और ये कि यहां बननेवाले मकानों में नींव ज्यादा गहरी होनी चाहिए। खन्ना साहब ने ये तो बताया कि यहां क्या किया जाना चाहिए था लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि जिस एमसीडी पर हादसे का इल्जाम लगा है वो सीधे तौर पर उनके अधीन काम करती है . उन्होंने ये भी नहीं बताया कि. इन बीते सालों में क्या उन्होंने कभी एमसीडी के अधिकारियों से ये पूछा कि दिल्ली के अवैध कालोनियों में रहनेवाले हजारों परिवार की जिंदगी बचाने के लिए आप क्या कर रहे हैं। आस पास के लोगों का कहना है कि यहां दो महीने से बेसमेंट में पानी भरा था, जाहिर तौर पर इससे इमारत की नींव कमजोर हो गई थी, लेकिन इसके बावजूद मकानमालिक इमारत में खुलेआम अवैध तौर पर पांचवी मंजिल बनवा रहा था। ये सब कुछ एमसीडी के अफसरों की जानकारी के बगैर तो नहीं ही हुआ होगा लेकिन एमसीडी के कमिश्नर का कहना है कि इन्कवायरी के बाद ही हादसे की वजह का पता चल पाएगा।
अब ये तय हो गया है कि इस हादसे की इन्क्वायरी होगी, कमेटी बैठेगी, और हादसे की वजह एक रिपोर्ट की शक्ल में शायद कई साल के बाद सामने आएगी। फिलहाल दिल्ली सरकार और एमसीडी 1369 ऐसी कालोनियों को वैध बनाने के काम में लगी है जहां हर मकान ललिता पार्क के एन-85 की तरह ही है।

4 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा सर, शीला दीक्षित को बहाना बनाने की पुरानी आदत है और अपनी गलती के लिए दूसरे को जिम्मेदार ठहराने में भी उन्हें बहुत मजा आता है।

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  2. वाह क्या बात है आशीष जी,...लिखते रहिये...लिख्खाड बन जायेंगें

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  3. शीला जी को एहसास है मगर... पहले इन्कवायरी होगी... फिर कमेटी बैठेगी.. और सालों बाद फैसला आएगा... तब तक हो सकता है हादसे के कई जिम्मेदार लोग भी भगवान को प्यारे हो जाएं...

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  4. शीला जी को जनता के दर्द का अहसास!

    घटना के तीसरे दिन जब मैं घटनास्थल पर देर शाम को पहुंचा, तो एमसीडी के लोग वहां खुदाई के बजाए ढहे मकान पर बड़ी ही बेदर्रदी से जेसीबी चला रहे थे.. आपस की बात-चीत में वे यह कह रहे थे कि कल ए.के.वालिया साहब आने वाले हैं, इससे पहले तक यहां कोई कूड़ा-कर्कट नहीं दिखना चाहिए... मैंने कहा कि अभी भी कुछ लाशें यहां हो सकती हैं, क्योंकि कुछ लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं।

    इसपर मेरा कार्ड देखकर, उनका कहना था कि हमें वालिया साहब की फ़िक्र है, मरने वाले तो मर गए... अब हम ज़िंदा लोग तो अपनी नौकरी के साथ ज़िदगी बचा लें... ठीक ही कहा...
    ये हैं- सरकार के नुमाइंदे, उनका विभाग और उनके कर्मी...

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