गुरुवार, 25 नवंबर 2010

एक जिन्दगी जिसका नाम है 'गोली'



महज दो साल की बच्ची के लिए ये नाम सुनने में आपको जरा अजीब सा लग सकता है। लेकिन तेजस्विनी चौहान को परिवार और मोहल्ले के लोग गोली नाम से बुलाते हैं। हमारे यहां हर बच्चे के नाम के पीछे कहानी होती है, उन अरमानों की कहानी जो पूरी नहीं हुईं, या वो अरमान जो अब भी बाकी हैं, इसलिए आप चाहे किसी राज्य में रहते हों, आपको गलियों और मुहल्ले में कई सचिन कई शाहरुख मिल जाएंगे। लेकिन गोली के नाम के पीछे एक खौफनाक मंजर है जिससे उसके पैदाइश के वक्त उसके माता पिता गुजर रहे थे।





गोली का जन्म कामा हॉस्पीटल में रात के तकरीबन 10 बजकर 30 मिनट पर हुआ। तारीख थी 26 नवंबर 2008। ..जब मुंबई के कामा अस्पताल में तेजस्विनी ने पहली बार आंखें खोली, तब फिजा में बारुद की गंध बसी थी, अस्पताल में अफरातफरी का आलम था, कसाब और अबू इस्माइल अस्पताल में गोलियां बरसा रहे थे। अस्पताल के पिछले दरवाजे से दाखिल दरिंदों ने अस्पताल की टेरेस पर मौजूद कांस्टेबल भानू नारकर और बबन उगाडे का कत्ल कर दिया था। चौथी मंजिल पर मैटरनिटी वार्ड में बिस्तर पर मौजूद गोली ये नहीं जानती थी कि उसके माता पिता उसकी सलामती की दुआएं मांग रहे थे। यही वजह है कि बच्चे का जन्मदिन जहां हर माता पिता के लिए खुशियां और जश्न मनाने का मौका होता है वहीं गोली के माता पिता बेटी के जन्मदिन के बारे में सोच कर ही डर जाते हैं।

गोली सिर्फ दो साल की है, इतनी छोटी सी उम्र में उसने इंसान को हैवान बनते देख लिया .. फिर भी ..नफरत सीखने के लिए ये उम्र छोटी है। हां जिस मां ने बरसती गोलियों के बीच इस गोली को जन्म दिया वो कसाब को माफ करने को कतई राजी नहीं। ये मां का दिल है, इसमें कातिल के लिए न रहम है न मुरव्वत । वैसे आपको बता दें ..गोली की एक और बहन है उसका जन्म तेरह फरवरी को यानी पुणे ब्लास्ट के दिन हुआ। गोली की मां वीजू के लिए एक नहीं . उसके. दोनों बच्चों के जन्मदिन खुशियों लेकर आते हैं तो ग़मगीन भी कर जाते हैं। तेजस्विनी गोली होकर भी सबकी मुंहबोली है, उसे देखकर दहशत की नहीं मुंबई के उस हौसले की याद आती है जिससे मुंबईकरों ने चार दिनों तक दहशत का सामना किया था।

2 टिप्‍पणियां:

  1. फ़िजां में उसी बारूद की गंध की हमेशा याद दिलाती रहेगी 'गोली',लेकिन अफ़सोस! इस बारूद की गंध केवल गोली के माता-पिता ही महसूस कर सकेंगे, बारूद की गंध के ज़िम्मेदार सरकार या प्रशासन नहीं...

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  2. "मैं फिर एक बार अपनी बात कहकर बैठ जाऊंगा, न टूटे तिलस्म सत्ता का, मेरे अंदर का कायर टूटेगा" बहुत खूब!

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