सोमवार, 22 नवंबर 2010
जिसने पाप न किया हो!
राजेश खन्ना की मशहूर फिल्म है रोटी। इस फिल्म में एक औरत को गुनाहों की सजा पत्थरों से मार कर दी जाती है तब गाने के जरिए एक सवाल उठाया गया था कि दूसरों के गुनाह गिनने का हक उन्हें है जिन्होंने कोई पाप न किया हो। अब इस नजारे पर गौर फरमाइए। संसद में घोटालों में घिरी सरकार पर सवाल उठाए जा रहे हैं। सदन में हंगामा करनेवालों में एआईएडीएमके के नेता भी हैं। अब अगर देश को ईमानदारी और नैतिकता का पाट जयललिता से सीखना पड़े तो इससे मुल्क की सियासत के लिए शर्मिंदगी का सबब ही माना जाएगा। अगर आपने संसद के दोनों सदनों में हंगामा करनेवालों माननीयों पर गौर किया हो तो आपको ऐसा लगेगा कि देश में नैतिकता की कापीराइट बीजेपी के ही पास है। लेकिन वहीं हकीकत ये भी है कि घोटाले में येदियुरप्पा के सामने अशोक चव्हाण और सुरेश कलमाड़ी तो शायद पासंग भी नहीं। यही नहीं कांग्रेस कम से कम अशोक चव्हाण और सुरेश कलमाड़ी से इस्तीफा लेने मे तो जरूर कामयाब रही, बीजेपी के बूते का ये भी नहीं। पार्टी के आला नेता येदियुरप्पा को विनती करके बुलाते हैं और वो अपना दूत भेजकर पार्टी को ठेंगा दिखा देते हैं। वाम दलों से नैतिकता की उम्मीद की जाती है। एबी वर्धन जैसे साफ सुथरी छवि वाले नेताओं की तादाद अब देश में इतनी कम रह गई है कि आप इन्हें उंगलियों पर गिन सकते हैं, लेकिन वामदलों का असली चेहरा देखना है तो केरल जाइए। पिनराई विजयन पर घोटालों की सीबीआई जांच कर रही है लेकिन प्रकाश करात उन्हें पूरी तरह बेदाग ही नहीं करार देते, सीबीआई की जांच को भी वो साजिश करार देते हैं। अब अगर देश के सबसे बड़े नेताओं को ही देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी पर भरोसा नही रहा तो अवाम को कैसे होगा। पहले जब भी कभी घोटाले की बात सामने आती थी तो सीबीआई जांच की मांग रखी जाती थी, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि सीबीआई की जांच के लिए सरकार दरख्वास्त कर रही हो और विपक्ष सुनने तक को राजी नहीं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि कैग की जांच में नाम सामने आने पर भी नेताओं ने इस कदर बेशर्मी का लबादा ओढा हो, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि देश के प्रधानमंत्री को सुप्रीम कोर्ट में अपने किए या नहीं किए की सफाई देनी पड़ी हो, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि सीवीसी की नियुक्ति को लेकर देश के एटार्नी जनरल को सुप्रीम कोर्ट में सफाई देनी पड़ी हो। अब न सीवीसी की साख रही, न सीबीआई की। इस साल बहुत कुछ ऐसा हुआ है जो पहले कभी नहीं हुआ। अब सवाल नीति पर नहीं नीयत पर उठ रहे हैं। और जब सरकार की नीयत पर सवाल उठते हैं तब .. सरकार से अवाम का भरोसा पूरी तरह उठ जाता है।
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सियासत है कहां? ....यह तो कॉरपोरेट का झमेला है...
जवाब देंहटाएंकिसी भी आवाम का किसी भी सरकार पर भरोसा था ही कब? अगर भरोसा होता, तो आजादी के 6 दशक बीतने के बाद भी किसान आत्महत्या और लोग भूख से नहीं मरते...
सियासत अब कॉरपोरेट का एक अंग बन गई है, जहां अपने फ़ायदे के लिए केवल तोड़-जोड़ होता है...संसद दलालों का सबसे बड़ा अखाड़ा बन गया है, जहां जनता की गाढ़ी कमाई व्यय की जाती है...जनता तो बस लोकतंत्र की ग़ुलाम बनकर रह गई है...उन्हें देश में बटन दबाने से ज़्यादा का अधिकार नहीं दिया गया है...