पर उपदेश कुशल बहुतेरे ...बीजेपी को ये बात अब जाकर समझ में आई है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ संसद से सड़क तक आवाज बुलंद करना आसान है लेकिन अपनी ही पार्टी के किसी नेता से घोटाले के इल्जाम में इस्तीफा लेना मुश्किल । अशोक चव्हान ने अपने तीन रिश्तेदारों को फ्लैट दिलाकर जो आदर्श अपनाया उसे कर्नाटक में येदियुरप्पा ने बुलंदियों तक पहुंचाया। उन्होंने अपने परिवार को 6 बेशकीमती प्लॉट ही नहीं दिए, अगर पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा के कहे पर गौर करें तो येदियुरप्पा ने बंगलुरु में भीड़ कम करने के नाम पर नाइस प्रोजेक्ट के जरिए कम से कम 30 हजार करोड़ का घोटाला भी किया। और ये तो महज बानगी है उस शख्स के कारनामे की जिसे कर्नाटक में बीजेपी की पहली सरकार बनाने का गौरव हासिल है। हकीकत तो ये है कि उन्होंने अपने दोनों बेटों और बेटी के साथ मिलकर घोटाले का संयुक्त परिवार बना रखा था। और अब आलम ये है कि पार्टी उनसे कुरसी छोड़ने की विनती कर रही है लेकिन येदियुरप्पा हैं कि मानते नहीं। उनकी दलील ये नहीं कि उनपर लगे इल्जाम गलत हैं, उनकी दलील ये है कि अशोक चव्हाण की तरह उनके परिवार ने भी घोटाले की जमीन लौटाने की उदारता दिखाई है, फिर इतनी हायतौबा क्यों। उनकी दलील ये भी है कि हमारे देश में भ्रष्टाचार के इल्जाम लगने पर इस्तीफा देने की रवायत है ही नहीं, फिर उनसे नई परंपरा शुरु करने को क्यों कहा जा रहा है। उनकी दलील ये है कि उनपर इल्जाम वो लगाए जिसका दामन बेदाग रहा हो, इस नाते इल्जाम लगाने की इजाजत कुमारास्वामी और अनंतकुमार को देने को वो कतई राजी नहीं। कुर्सी के लिए येदियुरप्पा की दीवानगी मुल्क देख चुका है। जब कुमारास्वामी ने कांग्रेस के साथ मिलकर हाल ही में पार्टी के विधायकों को तोड़ने की कोशिश की तो अपनी सरकार बचाए रखने के लिए येदियुरप्पा ने सियासत की हर मर्यादा तोड़ दी। पहली बार सदन में पुलिस का प्रवेश हुआ, नेताओं का चीरहरण हुआ, यहां तक कि नेता प्रतिपक्ष को भी सदन मे प्रवेश की इजाजत नहीं मिली।
येदियुरप्पा का कुर्सी मोह महज सियासी नाटक नहीं है, वो कुरसी नही बचा रहे ..कारोबार बचा रहे हैं। कुरसीसे उनके हटने का मतलब है जायदाद में हर साल हो रही दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की का रुक जाना। सियासत में बदनामी हो तो हो लेकिन कमाई के कारोबार में लगाम येदियुरप्पा को कतई मंजूर नहीं।
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